23) वो पहली सिनेमा की पिक्चर ( यादों के झरोके से )
शीर्षक = वो पहली सिनेमा की पिक्चर
एक बार फिर हाजिर हूँ आप सब के सामने, अपनी यादों के पिटारे से निकाल कर एक नयी याद को आप सब के साथ साँझा करने के लिए उम्मीद करता हूँ आपको पसन्द आएगी
और हो सकता है मेरी याद के साथ साथ आपकी याद भी ताज़ा हो जाए क्यूंकि जिस याद गार लम्हें का ज़िक्र में करने जा रहा हूँ उसे आपने भी कभी ना कभी अगर फिल्मे देखने का शोक रखते होंगे तो ज़रूर महसूस किया होगा
तो आइये चलते है उस याद गार लम्हें की यादों को ताज़ा करने
मैं कोई बहुत ज्यादा समय पहले की बात नही कर रहा हूँ, अभी हाल ही मैं गुज़रे चंद सालों की बात कर रहा हूँ, शयद वो साल या तो 2015 था या फिर सोलह या फिर 2014 मुझे ठीक से याद नही
मुझे फिल्मे देखने का ज्यादा शोक तो नही है, लेकिन फिर भी अगर फ़िल्म हॉरर या फिर कॉमेडी की या फिर सस्पेंस वाली हो तो मैं उसे ज़रूर देखता हूँ या फिर मेरी पसंदीदा फ़िल्म थ्री इडियट्स उसे तो मैं देखने से छोड़ता ही नही चाहे आधी देखु या पूरी जब भी वो टीवी पर आती है ना जाने क्यू इतनी बार देखने के बाद भी जब भी देखो नई ही लगती और हार आँखों में ख़ुशी के साथ साथ गम के आंसू भी दे जाती है और उत्साहित भी करती चली जाती है वो फ़िल्म अपने आप में ही एक मास्टर पीस है मेरी नज़र में
चलिए अब बात करते है, सिनेमा में देखि गयी पिक्चर के बारे में, सिनेमा बडी स्क्रीन पर बड़े बड़े साउंड सिस्टम में बडी सी सीट पर पॉपकॉर्न के साथ फ़िल्म को देखना
हमें भी बहुत अरमान था एक बार सिनेमा में पिक्चर देखने का क्यूंकि हमारे बड़े भाई बहन कभी ना कभी जब हमारे ही शहर में सिनेमा घर था तब जाकर फ़िल्म देख कर आये थे जिसकी बाते वो हमें बताते, पर अफ़सोस जब हम बड़े हुए तब वो सिनेमा हाल ही ख़त्म हो गया बस उसका नाम ही रह गया था , अपने शहर में होता तो कोई ना कोई बहाना बना कर देख ही आते अब दुसरे शहर कौन जाता, और अम्मी की मार से कौन बचाता और क्या बहाना बनाते की पिक्चर देखने गए थे तब तो और पिटाई लगती
इसलिए बड़े होने का इंतज़ार किया, और फिर शायद 2015 ही थी जब हम पहली बार सिनेमा में पिक्चर देखने गए , दरअसल छोटी ईद थी, ईद पर सलमान खान की फ़िल्म बजरंगी भाईजान लगी थी , मौका अच्छा था हाथ में इदी के मिले पैसे भी थे और लोगो से फ़िल्म की तारीफ भी बहुत सुनी थी जो देख कर आये थे
इसलिए दोपहर को ही घर से निकल गए, घर पर बता दिया था की पिक्चर देखने जा रहे है, थोड़ा बहुत बुरा भला सुनाया गया पर क्या करते बचपन से सुनते आ रहे थे इसलिए इग्नोर किया और घर से 15 किलोमीटर दूर उत्तराखंड में बसें रुद्रपुर में बने चावला सिनेमा जा पहुचे एक टिकट लिया और लाइन में लग गए, हम अकेले ही गए थे , क्यूंकि दोस्त कही और गए हुए थे
बहुत देर लाइन में लगने के बाद हम अंदर पहुचे चारों और अंधेरा ही अंधेरा था, एक बडी सी स्क्रीन पर कुछ चल रहा था शायद एडवरटाइजिंग हो रही थी पिक्चर शुरू होना अभी बाकी थी , हम तो बस चारों और देखते रहे इतनी आवाज़ गूँज रही थी
थोड़ी देर बाद हॉल लोगो से भर गया, ईद की वजह से बहुत लोग आये थे पिक्चर देखने , धीरे धीरे पिक्चर शुरू हुयी, पीछे से आ रही तेज आवज़ो से दिल बहुत तेज धड़क रहा था, क्यूंकि आवाज़ बहुत तेज थी और सामने लगी स्क्रीन पर लोगो के चेहरे उससे ज्यादा बड़े दिख रहे थे
फ़िल्म शुरू हो गयी थी सबसे पहले कश्मीर की खूबसूरत वादियों को दिखाया गया फिर उसके बाद उस गूंगी बच्ची को जिसका असली नाम के बजाये मुन्नी नाम ही सबको याद रहा फ़िल्म धीरे धीरे अपने चरण में आगे बड़ती गयी और हम भी उस माहौल के थोड़ा आदि हो गए हमें भी बडी स्क्रीन पर देखना अच्छा लगने लगा था
थोड़ी देर बाद अंतराल हो गया और सब लोग खाने पीने चले गए हमने भी कुछ खाया लेकिन ये बहुत ही नाइंसाफी है सिनेमा वालों की ना घर से कुछ ले जाने देते है और खुद इतना महंगा देते है सब कुछ की मूल्य देख कर बन्दे की भूख ही मर जाए
अंतराल के बाद फ़िल्म दोबारा शुरू हुयी थोड़ी मस्ती, थोड़ी ख़ुशी थोड़ी उदासी और लड़ाई के साथ फ़िल्म अपने अंतिम चरण पर पहुंच गयी और आखिर कार मुन्नी ने सलमान खान को मामा कह दिया उस समय तो हमारा दिल भी भर आया ऐसा लगा मानो वो गूंगी बच्ची हमें ही मामा कह रही हो मन किया उसे जाकर गले लगा ले,पर ऐसा संभव नही था
और थोड़ी देर बाद फ़िल्म ख़त्म हो गयी हम सब बाहर आ गए , हमारा पहला अनुभव और पहली फ़िल्म अच्छी रही सिनेमा में
ऐसे ही किसी अन्य याद गार लम्हें को आपके साथ साँझा करने आऊंगा समय मिलते ही जब तक के लिए अलविदा
यादों के झरोखे से
Gunjan Kamal
17-Dec-2022 09:07 PM
शानदार
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Sachin dev
14-Dec-2022 03:59 PM
Well done
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